मणिकर्णिका - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 🏇 का जीवन परिचय - Manikarnika - Life introduction of Rani Laxmibai of Jhansi
मणिकर्णिका-झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय...
सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत के 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं में से एक रानी लक्ष्मीबाई को देश का बच्चा-बच्चा जानता हैं. वो वीरता,देशभक्ति और सम्मान का प्रतीक हैं. झांसी की रानी ने देश में महिलाओं की पारंपरिक छवि को बदल दिया था, उन्होंने 18 वी शताब्दी में महिला सश्क्तिकरण की एक नयी परिभाषा रच दी थी.रानी लक्ष्मीबाई का जन्म और परिवार
नाम - रानी लक्ष्मीबाई
वास्तविक नाम - मणिकर्णिका
उपनाम - छबीली,मनु
पिता - मोरोपन्य ताम्बे
माता - भागीरथी
जन्मस्थान - वाराणसी
जन्मदिन - 19 नवम्बर 1828
इन्होंने 4 वर्ष की उम्र में ही अपनी माँ को खो दिया था, उनके पिता ने उन्हें बड़ा किया था. उन्होंने अपनी बेटी को घुड़सवारी और हाथी की सवारी के साथ साथ हथियार चलाना भी सिखाया था. उनकी परवरिश नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ हुयी थी, जिन्होंने उनके साथ स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था.
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह और महाराजा गंगाधर राव नेवालकर की मृत्यु
मणिकर्णिका का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से 1842 में हुआ था,और इस विवाह के बाद ही मणिकर्णिका को रानी लक्ष्मीबाई की पहचान मिली थी. इस दंपत्ति के यहां 1851 में एक पुत्र भी हुआ था लेकिन उसकी अकाल मृत्यु के बाद इस दम्पति ने महाराज के चचेरे भाई के पुत्र आनंद राव को अपना दत्तक पुत्र बनाने का निर्णय लिया. 21 नवम्बर 1853 को महाराज कि मृत्यु के चलते राज्य में फिर दुख के बादल घिर गए. झांसी के राजा की मृत्यु के बाद लार्ड डलहौजी ने “डोक्ट्राइन ऑफ़ लैप्स” (doctrine of lapse) का नियम लागू कर दिया और इसके चलतें महाराज के पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनने के अधिकार से वंचित किया गया.
मणिकर्णिका-रानी लक्ष्मी बाई और 1857 स्वतंत्रता संग्राम
उस समय के भारत के गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने गंगाधर राव की मृत्यु का फायदा उठाकर झांसी पर कब्जा करने की सोची,लेकिन बाल दामोदर राव (लक्ष्मीबाई के संरक्षण में प्रतीकात्मक शासन सम्भाल रहे थे) ने ब्रिटिश हुकुमत को मानने से इनकार कर दिया. अंग्रेजों की मंशा थी कि वो ये कहकर झांसी हडप लेंगे कि इसका कोई उतराधिकारी नहीं हैं.
मार्च 1854 में झांसी की रानी को 60,000 रूपये की वार्षिक पेंशन देने की घोषणा की गई और उन्हें झांसी का किला छोडकर जाने का आदेश दे दिया गया.लेकिन वो झांसी ना छोड़ने की जिद पर थी. लक्ष्मीबाई ने 1400 विद्रोहियों की सेना तैयार की जिसमें महिलाएं भी शामिल थी,उनके सहयोगियों में मुख्यत: गुलाम गॉस खान,दोस्त खान,खुदा बक्श,सुंदर-मुन्दर,काशी बाई,लाल भाऊ बक्षी,मोती बाई,दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह जैसे नाम शामिल थे. वास्तव में 10 मई 1857 को जब लक्ष्मीबाई सेना इक्कट्ठा कर रही थी तब मेरठ में सैन्य विद्रोह हो गया,जिसमें बहुत से विद्रोही, जिनमे महिलाये और बच्चे भी शामिल थे मारे गये. इसी दौरान लक्ष्मीबाई को ये आदेश मिला कि वो राज्य को अंग्रेजों को सौंप दे.
झाँसी का युद्ध
जून 1857 को बंगाल नेटिव इन्फेंट्री ने झांसी को खजाने समेत सीज कर दिया,उन्होंने यूरोपियन ऑफिसर्स और उनकी पत्नी बच्चो को मार दिया. इस कारण लक्ष्मीबाई ने सत्ता सम्भाली और अंगेजों को पत्र लिखा, इसी दौरान ब्रिटीश सरकार से मिले हुए “ओरछा” और “दतिया” नाम के 2 व्यक्तियों ने भी झांसी पर चढाई कर दी,उनका उद्देश्य झांसी को आपस में बांटना था. तब लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सरकार से मदद की गुहार लगाई लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया इस कारण लक्ष्मीबाई ने सेना एकत्र की और अगस्त 1857 में इन लोगों को हराया. अगस्त 1857 से जनवरी 1858 के दौरान झांसी में लक्ष्मीबाई के राज्य में काफी शांति थी,लेकिन ब्रिटिश झांसी पहुंचे , सर ह्यूज रोज जो कि ब्रिटिश आर्मी सम्भाल रहे थे,उन्होंने शहर को तबाह करने की धमकी देते हुए रानी लक्ष्मीबाई को सत्ता अंग्रेजों को सौपने को कहा. लक्ष्मीबाई ने ऐसा करने से मना कर दिया और इस तरह से 23 मार्च 1858 से झांसी का युद्ध शुरु हो गया
मार्च 1858 में अंग्रेजों के झांसी पर आक्रमण करने पर लक्ष्मीबाई ने अपनी बनाई सेना के साथ उनसे 2 सप्ताह तक युद्ध किया..भयंकर युद्ध के बाद ब्रिटिश सेना झांसी में घुस गयी तब लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र दामोदर राव को साथ लेकर बहादुरी से दोनों हाथों में तलवार लेकर लड़ने लगी. अंग्रेजों ने 24 मार्च को किले पर बमबारी की,जिसका जवाब उन्हें मिला. झांसी की रानी ने तात्या टोपे से सहायता मांगी,तात्या टोपे 20,000 सैनिको को लेकर झाँसी पहुच गए,लेकिन वो भी ब्रिटिश सेना के सामने ज्यादा समय तक टिक नही पा रहे थे. युद्ध ज़ारी रहा,और जब लक्ष्मीबाई ने ये महसूस किया कि झांसी के युद्ध का कोई परिणाम नहीं आने वाला हैं,तो उन्होंने झांसी को छोड़ने का फैसला किया.
कालपी का युद्ध
लक्ष्मीबाई दामोदर राव के साथ झांसी से निकल गई,और कालपी पहुची. यहाँ वो तात्या टोपे की सेना में शामिल हो गयी. यहाँ उन्होंने कस्बे पर कब्ज़ा कर लिया,और इसकी सुरक्षा की तैयारियां देखने लगे. ब्रिटिश ने 22 मई 1858 को कालपी पर आक्रमण किया. जिसमें तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हार गए,और इस तरह झांसी की रानी के साथ तात्या टोपे,राव साहिब और बाँदा के नवाब ग्वालियर चले गए जहाँ पर ये सब लोग शहर की रक्षा करने वाली सेना में शामिल हो गए. लक्ष्मीबाई और उनकी टीम ग्वालियर के किले के सामरिक महत्व को समझ गये थे इसलिए वो इन पर कब्जा करना चाहती थी, लेकिन वो विद्रोही नेताओं को ये नहीं समझा सकी.16 जून 1858 को जनरल रोज की सेना वहाँ पर पहुच गयी.17 जून को फूल बाघ के पास कैप्टन हेनेज ने भारतीय सेना से युद्ध किया,लक्ष्मीबाई उस जगह को छोड़ने की कोशिश कर रही थी, इसलिए उन्होंने पुरुष का वेश धारण किया,अपनी पीठ पर अपने पुत्र को बाँधा,और ब्रिटिश सेना पर हमला बोल दिया,युद्ध में लक्ष्मीबाई घायल हो गयी.
रानी लक्ष्मी बाई म्रुत्यु
लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के हाथों नही मरना चाहती थी इसलिए उन्होंने एक संत को कहा था कि उनका दाह संस्कार कर दे. 17 जून 1858 को उनका देहांत हो गया. उनकी इच्छा के अनुसार उनके शव का दाह-संस्कार 18 जून 1858 को किया गया जबकि उनकी मृत्यु के बाद भी अंग्रेज को ग्वालियर पर कब्जा करने के लिए 3 दिन लगे.
रानी लक्ष्मी बाई और झलकारी बाई
रानी लक्ष्मीबाई की सेना में कई वीरांगनाओं में से एक झलकारीबाई भी थी जिन्होंने झांसी के युद्ध के समय लक्ष्मीबाई का रूप धर लिया था,जिससे कि लक्ष्मीबाई को बचकर निकलने का मौका मिल सके, और वो अंग्रेजों का ध्यान लक्ष्मीबाई से हटाकर खुद पर कर सके. वो सीधे जनरल रोज के कैंप पहुच गयी थी और वहां जाकर उन्होंने कहा कि वो जनरल से मिलना चाहती हैं. जनरल ने उन्हें रानी समझकर पूछा कि वो क्या सजा चाहती हैं अपने लिए. झलकारी बाई ने कहा कि उन्हें फांसी की सजा दी जाए,तब जनरल ने कहा कि यदि 1 प्रतिशत महिलाएं भी उनके जैसी हो जाए तो भारत अंग्रेजों को देश छोडकर जाने को मजबूर कर देगा. हालांकि अगले दिन “दूल्हा जू” नाम के आदमी ने झलकारी बाई को पहचान लिया और ब्रिटिशर्स को एहसास हो गया कि उनके साथ धोखा हुआ हैं. झलकारी की मृत्यु को लेकर विविध मत हैं,कुछ के अनुसार उनकी मृत्यु 1858 में हुयी थी जबकि कुछ के अनुसार उन्हें अंग्रेजों ने स्वतन्त्र कर दिया था और उनकी मृत्यु 1890 में हुयी थी. झलकारीबाई के सम्मान में एक प्रतिमा ग्वालियर में स्थापित की गयी हैं इसके अलावा 2001 में भारत सरकार ने उन पर एक स्टाम्प ज़ारी किया था
➨मणिकर्णिका-रानी लक्ष्मीबाई से जुड़े रोचक तथ्य
➨झांसी के किले के बारे में जानकारी :-
1857 की क्रांति का भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमे एक से बढकर एक वीर योद्धाओ ने अपना विशेष योगदान दिया है, इन वीर योद्धाओ में रानी लक्ष्मीबाई और मंगल पांडे जैसे वीर नाम भी सम्मिलित है। रानी लक्ष्मी बाई का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे पन्नो में दर्ज है, उन्ही से संबंधित झांसी का किला अपनी वास्तुकला शैली और कलाकृतियों के लिए पूरे विश्वभर में मशहूर है।➨झांसी के किले का संक्षिप्त विवरण :-
स्थान :- झांसी, उत्तर प्रदेश (भारत)
निर्माण :-1613 ई.
निर्माता:-ओरछा नरेश “बीरसिंह जुदेव”
प्रकार :-किला
➨झांसी के किले का इतिहास :-
इस विश्व प्रसिद्ध किले का निर्माण वर्ष 1613 में ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव द्वारा करवाया गया था। यह किला बुंदेला का सबसे शक्तिशाली किला हुआ करता था। 17वीं शताब्दी में मोहम्मद खान बंगेश ने महाराजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया था, इस आक्रमण से महाराजा छत्रसाल को बचाने में पेशवा बाजीराव ने सहायता की थी जिसके बाद महाराजा छत्रसाल ने उन्हें राज्य का कुछ भाग उपहार के रूप में दे दिया था, जिसमे झाँसी भी शामिल था। इसके बाद नारोशंकर को झाँसी का सूबेदार बना दिया गया। उन्होंने केवल झाँसी को ही विकसित नही किया बल्कि झाँसी के आस-पास स्थित दूसरी इमारतो को भी बनवाया। नारोशंकर के बाद झांसी में कई सूबेदार बनाए गये थे जिनमे रघुनाथ भी सम्मिलित थे जिन्होंने इस किले के भीतर महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था। वर्ष 1838 में रगुनाथ राव द्वितीय की मृत्यु के बाद ब्रिटिश शासको ने गंगाधर राव को झाँसी के नए राजा के रूप में स्वीकार किया। वर्ष 1842 ई. में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका ताम्बे से शादी की, जिसे बाद में रानी लक्ष्मीबाई के नाम से पुकारा जाने लगा था। वर्ष 1851 ई. में रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम दामोदरराव रखा गया परंतु वह शिशु 4 महीने के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था, इसके बाद महाराजा ने अपने भाई के एक पुत्र “आनंद राव” को गोद लिया जिसका नाम बाद में बदलकर दामोदर राव रख दिया गया था। वर्ष 1853 में महाराजा की मृत्यु के बाद, गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने चुक का सिद्धांत लगाकर दामोदर राव को सिंहासन सौपने से मना कर दिया था। 1857 के विद्रोह दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने किले की बागडोर अपने हाथ में ले ली और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अपनी सेना का नेतृत्व किया। अप्रैल 1858 में जनरल ह्यूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना झाँसी को पूरी तरह से घेर लिया और 4 अप्रैल 1858 को उन्होंने झाँसी पर कब्ज़ा भी कर लिया। उस समय रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत दिखाकर ब्रिटिश सेना का सामना किया और घोड़े की मदद से महल से निकलने में सफल रही परंतु 18 जून 1858 में ब्रिटिश सेना से लड़ने के दौरान वह शहीद हो गई थी। वर्ष 1861 में ब्रिटिश सर्कार ने झाँसी के किले और झाँसी शहर को जियाजी राव सिंधियां को सौप दिया, जो ग्वालियर के महाराज थे लेकिन 1868 में ब्रिटिशो ने ग्वालियर राज्य से झाँसी को वापिस ले लिया था।➨झांसी के किले के बारे में रोचक तथ्य
यह किला भारत के सबसे भव्य और ऊँचे किलो में से एक है, यह किला पहाडियों पर बना हुआ है जिसकी ऊंचाई लगभग 285 मीटर है।
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